आज जमाने के चमक धमक के आगे भारतीय संस्कृति और उसकी जान कविता का मानो विलोपन सा हो रहा है। ऐसे समय पर कविता के क्षेत्र मे आने वाले युवाओ की जितनी भी सराहना किया जाये कम है। रवि यादव प्रितम द्वारा गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर कि गयी कविता भार वर्ष के उन शहिदो को समर्पित है जिनके बलिदान के कारण आज हम आजाद है जैसा शब्द बड़े ही गर्व से कहते है। रवि यादव प्रितम की उस कविता के लिए दिये गये लिंक पर क्लिक करके पूरी कविता सुनी जा सकती है।
शुक्रवार, 26 जनवरी 2024
कविता की दुनिया का उभरता सितारा -रवि यादव प्रितम
भारत का अनमोल सितारा आसमान से टूटा
एकाएक है लुप्त हो गया दिनकर का आलोक
घिरी घटा घनघोर चतुर्दिक फैल गया है शोक
नेताजी बिन दुनिया वजूदहीन हो गई है
धरती अपने पुत्र को खोकर दीन हो गई है
महासिंधु में डूब गई है असहायों की नाव
वक्त अबाधित के भी उठते नहीं उठाये पांव
शैल शिखर से जल स्रोतों का झरना विरम गया है
नहीं रहे नेताजी यह सुन सागर सहम गया है
कुंज,विहग,खग,कली,गली गमगीन हो गई है
धरती अपने पुत्र को खोकर दीन हो गई है
भारत का अनमोल सितारा आसमान से टूटा
बनते बनते बात आकस्मिक भाग्य देश का फूटा
क्या और क्यों है कठिन साधना से एक साधक उबा
भरी दोपहरी मध्य गगन में तपता सूरज डूबा
विधि,विरंच की भी अब तो संगीन हो गई है
धरती अपने पुत्र को को कर दीन हो गई है
बेरहमी से कुटिल काल ने देव पुरुष को खाया
उठा अचानक अनुजों के सर से अग्रज का साया
दीए बुझे कुटीर-महल के बुझ गए चूल्हे जलते
होता देश कुछ और साथ जो वो आजीवन चलते
कुछ अपनों की नीयत महामलीन हो गई है
धरती अपने पुत्र को खोकर दीन हो गई है